वो कोई और न था चंद ख़ुश्क पत्ते थे, शजर से टूट के जो फ़स्ल-ए-गुल पे रोए थे| अभी अभी तुम्हें सोचा तो कुछ न याद आया, अभी अभी तो हम एक दूसरे से बिछड़े थे| तुम्हारे बाद चमन पर जब इक नज़र डाली, कली कली में ख़िज़ां के चिराग़ जलते थे| तमाम उम्र वफ़ा के गुनाहगार रहे, ये और बात कि हम आदमी तो अच्छे थे| शब-ए-ख़ामोश को तन्हाई ने ज़बाँ दे दी, पहाड़ गूँजते थे दश्त सन-सनाते थे| वो एक बार मरे जिनको था हयात से प्यार, जो जि़न्दगी से गुरेज़ाँ थे रोज़ मरते थे| नए ख़याल अब आते है ढल के ज़ेहन में, हमारे दिल में कभी खेत लह-लहाते थे| ये इरतीक़ा का चलन है कि हर ज़माने में, पुराने लोग नए आदमी से डरते थे| 'नदीम' जो भी मुलाक़ात थी अधूरी थी, कि एक चेहरे के पीछे हज़ार चेहरे थे |
WARM REGARDS,
Akhtar khatri *****help what we can with others in need...the world is ONE big family*****
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