न चाहूं मान दुनिया में, न चाहूं स्वर्ग को जाना । मुझे वर दे यही माता रहूं भारत पे दीवाना ।
करुं मैं कौम की सेवा पडे चाहे करोडों दुख । अगर फ़िर जन्म लूं आकर तो भारत में ही हो आना ।
लगा रहे प्रेम हिन्दी में, पढूं हिन्दी लिखूं हिन्दी । चलन हिन्दी चलूं, हिन्दी पहरना, ओढना खाना ।
भवन में रोशनी मेरे रहे हिन्दी चिरागों की । स्वदेशी ही रहे बाजा, बजाना, राग का गाना ।
लगें इस देश के ही अर्थ मेरे धर्म, विद्या, धन । करुं में प्राण तक अर्पण यही प्रण सत्य है ठाना ।
नहीं कुछ गैर-मुमकिन है जो चाहो दिल से "बिस्मिल" तुम उठा लो देश हाथों पर न समझो अपना बेगाना ।।
WARM REGARDS, Akhtar khatri*****help what we can with others in need...the world is ONE big family*****
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