<>_<>HAI MERI TUM'<>_<>
अनेक दुखों के भार से | |||
बेजार हुई जा रही, इन दिनों | |||
"हे मेरी तुम !" | |||
मैं जानना चाहता हूँ | |||
की हज़ार मुश्किलों के बीच | |||
एकदम से मुस्करा पड़ने की | |||
मज़बूरी क्या है ? | |||
मैंने तुमसे, तुम्हारी | |||
हँसी तो नहीं मांगी थी | |||
यह और बात, कि | |||
लाचारी भी नहीं मांगी थी | |||
ऐसा नहीं कि तुमसे सुख न चाहा | |||
शायद ! ऐसा भी नहीं | |||
कि तुमने मेरे सुख को समझा ही नहीं ! | |||
ख़ुद को टुकड़ा-टुकड़ा करके | |||
बारी-बारी देती गईं तुम | |||
और मैं संकोचवश यह न कह सका | |||
कि मैं तुम्हें पूरा चाहता हूँ | |||
न ही यह, कि मैं | |||
तुम्हें टुकड़े-टुकड़े होते नहीं देख सकता। |
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