हम जीवन के महाकाव्य हैं केवल छ्न्द प्रसंग नहीं हैं। कंकड़-पत्थर की धरती है अपने तो पाँवों के नीचे हम कब कहते बन्धु! बिछाओ स्वागत में मखमली गलीचे रेती पर जो चित्र बनाती ऐसी रंग-तरंग नहीं है। तुमको रास नहीं आ पायी क्यों अजातशत्रुता हमारी छिप-छिपकर जो करते रहते शीतयुद्ध की तुम तैयारी हम भाड़े के सैनिक लेकर लड़ते कोई जंग नहीं हैं। कहते-कहते हमें मसीहा तुम लटका देते सलीब पर हंसें तुम्हारी कूटनीति पर कुढ़ें या कि अपने नसीब पर भीतर-भीतर से जो पोले हम वे ढोल-मृदंग नहीं है। तुम सामुहिक बहिष्कार की मित्र! भले योजना बनाओ जहाँ-जहाँ पर लिखा हुआ है नाम हमारा, उसे मिटाओ जिसकी डोर हाथ तुम्हारे हम वह कटी पतंग नहीं है।
WARM REGARDS,
Akhtar khatri *****help what we can with others in need...the world is ONE big family*****
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